प्रेम दर्पण है
प्रेम दर्पण है,, जिसमें मैं जब - जब स्वयं को देखती हूं,,, तो तुम्हारा अक्श उभर जाता है,,,, जो कि बताता है कि मेरे अन्दर मुझसे ज्यादा अब तुम हो,,, तुम्हारा और मेरा अब कुछ अलग नही है,,,, तुम मेरे मन से मेरे तन तक अपना अधिकार रखते हो,,, और मैं भी जानती हूं कि तुम सिर्फ मेरे हो,,, तुम्हारे साथ मैं अपनी परेशानियो को भूलकर,, खिलखिलाती हूं किसी नादान बच्चे की तरह,,,, तुम्हारे सामने मुझे समझदार बनने की जरूरत नही होती,,, क्योकि तुम भी मेरे साथ बच्चे बन जाते हो,,, तुम्हारे प्रेम को हर पल अपने साथ महसूस करना,,, यह मेरे लिये प्रेम की परिभाषा की तरह है,,,, तुम्हारा होकर रह जाना,,, मुझे सम्पूर्ण करता है,,, तुम्हारे नाम से साथ अपना नाम जोड लेना,,, मेरी रूह को रंगीलापन देता है,,,, तुम्हारे एहसासो का मुझे छूकर जाना,,, मेरे शरीर में ठण्डी सिहरन सा पैदा करता है,,,, हाथो की लकीरो से जुदा होकर भी,,, मेरे प्रेमपूरित ह्रदय पर तुम्हारी छवि का उभर आना,,, एक प्रेम का ही तो संकेत है,,, कि मैं सिर्फ तुम्हारी हो चुकी हूं,,,,, "